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!!विद्यालयी शिक्षा का हिस्सा बनेंगे भगवद्गीता,रामायण!! (कमल किशोर डुकलान ‘सरल’)

भारतीय ज्ञान परंपरा के श्रीमद्भगवद्गीता और रामायण को कक्षागत पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने का मुख्य उद्देश्य।

छात्रों में न केवल धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना है,बल्कि उनके जुड़े नैतिक मूल्य,विवेकशीलता,भावनात्मक संतुलन, नेतृत्व क्षमता,और कर्तव्यबोध जैसे गुणों का विकास करना है।…. भारत की प्राचीन ज्ञान,शिक्षा की एक समृद्ध ज्ञान परम्परा वेद,उपनिषद, पुराण, शास्त्र एवं लोक साहित्य में निहित ज्ञान को समाहित करती है,जिसमें दार्शनिक, आध्यात्मिक,सामाजिक,नैतिक एवं सांस्कृतिक पहलू शामिल हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा में ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरित करने की एक व्यवस्थित व्यवस्था रही है। यह परंपरा हमारे वेदों से शुरू होकर, उपनिषदों,पुराणों,और विभिन्न शास्त्रों के माध्यम से विकसित हुई और संतों के माध्यम से जनसाधारण तक पहुंची। प्राचीन ज्ञान परंपरा व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक,और आध्यात्मिक व्यक्ति के समग्र विकास पर जोर देती है। भारतीय ज्ञान परम्परा से संविधान में उल्लिखित सामाजिक न्याय,समानता,और सहिष्णुता जैसे सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देती है। भारतीय ज्ञान परंपरा में वैज्ञानिक सोच और अनुसंधान की गहरी परंपरा रही है, जिसमें जीव विज्ञान,भौतिकी, रसायन विज्ञान,चिकित्सा,खगोल विज्ञान और गणित जैसे विषय शामिल हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा भारत की एक अमूल्य धरोहर है। यह ज्ञान और शिक्षा की एक समृद्ध और विविध प्रणाली है जो आज भी प्रासंगिक है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अन्तर्गत छात्रों में भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रावधान के तहत उत्तराखंड सरकार का विद्यालयी शिक्षा विभाग छात्रों में नैतिक विकास विकसित करने के उद्देश्य से स्कूली शिक्षा में रामायण और श्रीमद्भगवद्गीता की अपनी पाठ्यचर्या में सम्मिलित करने जा रही है। भारतीय ज्ञान परंपरा के तहत उत्तराखंड के विद्यालयी शिक्षा विभाग का गीता और रामायण को कक्षागत पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का मुख्य उद्देश्य छात्रों को केवल धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना नहीं,बल्कि छात्रों से जुड़े नैतिक मूल्य,विवेकशीलता,भावनात्मक संतुलन, नेतृत्व क्षमता,और कर्तव्यबोध जैसे गुणों का विकास है।

श्रीमद्भगवद्गीता और रामायण की शिक्षाएं छात्रों को न केवल जीवन के सभी पहलुओं में मार्गदर्शन करती है, बल्कि एक आदर्श मानव बनाने में मदद करती है। श्रीमद्भगवद्गीता की शिक्षा से स्व का मूल्यांकन एवं आत्म साक्षात्कार प्राप्त होने के साथ छात्रों को परम्परागत संस्कृति से जोड़ने,उन्हें समझदार,जिम्मेदार और संतुलित व्यक्तित्व की ओर भी अग्रसर करेंगी।
श्रीमद् भगवद् गीता को जीवन के हर क्षेत्र में पथ प्रदर्शक माना गया है। गीता के उपदेश में भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन का उदाहरण हम सबके सामने है।

भगवान श्री राम के वन गमन के समय भारत,श्रीलंका के बीच बना रामसेतु, जिसे ‘एडम्स ब्रिज’ भी कहा जाता है, रामायण में वर्णित पुल का एक संभावित प्रमाण माना जाता है। यह वानर सेना मानव निर्मित संरचना ही है,जो रामायण की कहानी को समर्थन देती है। भगवद्गीता में, भगवान श्रीकृष्ण योग को “समत्वं योग उच्यते” जिसका अर्थ है,समानता की स्थिति या समभाव। यह स्थिति इंद्रियों को वश में करने, मन को एकाग्र करने और कर्मों में कुशलता प्राप्त करने से प्राप्त होती है। श्रीमद्भगवद्गीता में कर्मयोगी श्री कृष्ण ने अर्जुन को योग में स्थित होकर कर्म करने का उपदेश देते हैं, जिसका अर्थ है फल की इच्छा का त्याग करके, सफलता और असफलता में समभाव रखते हुए कर्म करते जाना। श्रीमद्भगवद्गीता वैज्ञानिक पहलुओं पर गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। यह मनुष्य को जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए मार्गदर्शन करता है।
रामायण और श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय ज्ञान परम्परा के वैज्ञानिक आधार हैं,जो न केवल एक धार्मिक ग्रंथ हैं बल्कि यह मानव जीवन के योग,वेदांत दर्शन में मानव अस्तित्व प़चकोष अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश और आनंदमय कोश तथा व्यवहार शास्त्र का भी उत्कृष्ट ग्रंथ है, जिसमें मनुष्य के व्यवहार, निर्णय क्षमता, कर्तव्यनिष्ठा, तनाव प्रबंधन एवं विवेकपूर्ण जीवन जीने के वैज्ञानिक तर्क निहित हैं। उत्तराखंड सरकार के विद्यालयी शिक्षा में छात्र-छात्राओं को एक श्रेष्ठ नागरिक बनाए जाने के दृष्टिगत निश्चित रूप से रामायण और श्रीमद् भगवद् गीता मील का पत्थर साबित हो सकती है।
ग्रीन वैली गली नं 5 सलेमपुर, सुमन नगर,बहादराबाद (हरिद्वार)

समर्थ भारत न्यूज़

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