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आखिर क्यों तोड़ा जा रहा है देहरादून का प्रिंस होटल? कहानी प्रिंस होटल की… देहरादून के चौराहे को दी पहचान; अब बन जाएगा इतिहास

देहरादून : दून के प्रिंस चौक चौराहे को जिसने प्रिंस नाम दिया वह कोई देश या प्रदेश की कोई विभूति नहीं हैं। इस चौराहे को अपना नाम होटल प्रिंस ने दिया। वर्ष 1964 में जब यह होटल खुला तो नागरिकों की जुबां पर प्रिंस चौक का नाम गहराता चला गया। दून की पहचान का अभिन्न हिस्सा प्रिंस चौक को अपना नाम देने वाला होटल प्रिंस के निशां जल्द मिटने वाले हैं।जो लोग देहरादून से वाकिफ हैं, वह प्रिंस चौक से वाकिफ न हों, ऐसा संभव नहीं। जब दून ने शहरीकरण की तरफ पहला कदम बढ़ाया था, तब कुछ ही चौराहे शहर का हिस्सा थे। इनमें से एक प्रिंस चौक भी है। इस चौराहे को जिसने प्रिंस नाम दिया, वह कोई देश या प्रदेश की कोई विभूति नहीं हैं।इस चौराहे को अपना नाम होटल प्रिंस ने दिया। वर्ष 1964 में जब यह होटल खुला तो नागरिकों की जुबां पर प्रिंस चौक का नाम गहराता चला गया। वर्ष 1990 में जब चौक का नाम बदलकर सरकारी रिकार्ड में महाराजा अग्रसेन चौक रखा गया, तब भी नागरिकों की जुबां से पुराना नाम नहीं हट पाया।हालांकि, अब वह होटल सिर्फ यादों में रह जाएगा, जिसने इस चौराहे को अपना प्रिंस नाम दिया। कोविडकाल से बंद चल रहे प्रिंस होटल को इन दिनों ध्वस्त करने का काम चल रहा है। दून की पहचान का अभिन्न हिस्सा प्रिंस चौक को अपना नाम देने वाला होटल प्रिंस के निशां जल्द मिटने वाले हैं। आइए जानते हैं प्रिंस चौक को अपना नाम देने वाले प्रिंस होटल की कहानी।

प्रिंस होटल की कहानी दरअसल, दून के रईसों में शुमार रहे सेठ स्व. लक्ष्मणदास विरमानी ने होटल प्रिंस की नींव वर्ष 1962 में रखी थी। तीन जून 1964 में होटल की ओपनिंग बड़े समारोह के रूप में की गई थी। सेठ स्व. लक्ष्मणदास विरमानी के बड़े पुत्र हरीश विरमानी बताते हैं कि उनके छोटे भाई को घर में सभी प्यार से प्रिंस नाम से बुलाते थे। होटल के नामकरण की बारी आई तो होटल का नाम भी प्रिंस के नाम पर रख दिया गया।

आजादी के बाद का था पहला आधुनिक होटल हरीश विरमानी बताते हैं कि जब प्रिंस होटल का संचालन किया गया, तब शहर की आबादी बहुत कम थी। जो भी होटल थे, वह आजादी से पहले के थे। ऐसे में आधुनिक सुविधाओं वाला सिर्फ प्रिंस होटल था। अधिकतर धनाढ्य परिवारों के बच्चों की शादी इसी होटल में की जाती थी।बाहर से भी जो धनाढ्य लोग दून आते थे, वह यहीं रुकना पसंद करते थे। शहर की आबादी कम थी और होटल भी गिने-चुने थे तो लोग जगह की पहचान के लिए होटल का नाम लिया करते थे। इस तरह धीरे-धीरे होटल के सामने वाले चौक का नाम प्रिंस चौक ही जुबां पर चढ़ गया।

60 साल में बहुत कुछ बदल गया, व्यावसायिक प्राथमिकता भी बदली हरीश विरमानी के बताया कि दून में शहरीकरण बहुत आगे बढ़ चुका है। तमाम होटल और रिसोर्ट दून में खुल चुके हैं। होटल का निर्माण एक बीघा में किया गया है। उस समय के हिसाब से यह जगह बहुत अधिक थी। लेकिन, अब शहर के व्यस्ततम हिस्से पर होटल का संचालन चुनौतीपूर्ण है।अब बच्चों की प्राथमिकता भी दूसरे पेशे की तरफ है। कोविडकाल से ही होटल का संचालन बंद चल रहा था। लिहाजा, इसे बेच दिया गया। शहर के प्रमुख हिस्से की पहचान बन चुके होटल को बेचने का निर्णय परिवार के लिए आसान नहीं रहा। लेकिन, कई बार कठिन निर्णय भी करने पड़ते हैं। नए मालिक यहां पर कुछ और व्यावसायिक गतिविधि करना चाह रहे हैं। लिहाजा, इसे ध्वस्त किया जा रहा है।

SAMARTH DD NEWS

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