
रुड़की। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) परिसर में उत्तराखण्ड राज्य स्थापना दिवस की रजत जयंती बड़े ही समारोहपूर्वक, गरिमामयी वातावरण में तथा उत्साह से परिपूर्ण माहौल के बीच मनाई गई। विद्यालय प्रांगण इस अवसर पर देशभक्ति, पर्वतीय संस्कृति और राज्य आंदोलन की स्मृतियों से भावनात्मक रूप से सराबोर दिखाई दिया। रजत जयंती के इस विशेष अवसर पर आयोजित समारोह में राज्य निर्माण में योगदान देने वाले उत्तराखण्ड आन्दोलनकारियों को विशेष रूप से सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम में सबसे पहले राज्य गीत प्रस्तुत किया गया, जिसके बाद अतिथियों और उपस्थित जनसमूह ने उत्तराखण्ड आंदोलन की ऐतिहासिक यात्रा को याद करते हुए राज्य आंदोलन के अमर शहीदों एवं संघर्षशील साथियों को श्रद्धांजलि दी। मंच पर उत्तराखण्ड के निर्माण काल से जुड़े महत्वपूर्ण प्रसंगों और जनआंदोलन की ऊर्जा का स्मरण कराया गया, जिससे पूरा वातावरण प्रेरणा और सम्मान की भावना से ओतप्रोत हो गया।
इस अवसर पर आन्दोलनकारी रविन्द्र ममगाई, कमला बमोला, चक्रपाणि श्रीयाल और एस. के. शर्मा को उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन में उनके बहुमूल्य योगदान, संघर्ष और सक्रिय भूमिका के लिए सम्मानित किया गया। सम्मान ग्रहण करते समय सभी आंदोलनकारियों के चेहरों पर गर्व और भावुक संतोष झलक रहा था। उपस्थित जनसमुदाय ने तालियों की गड़गड़ाहट से उनका स्वागत किया।
कार्यक्रम में डायट प्राचार्य कैलाश डंगवाल की विशेष उपस्थिति रही। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि उत्तराखण्ड आंदोलन सामूहिक चेतना, जनसहभागिता और संघर्ष का ऐसा उदाहरण है जिसने पूरे देश को प्रेरित किया। उन्होंने आंदोलनकारियों के अदम्य साहस को नमन करते हुए कहा कि नई पीढ़ी को इस इतिहास से सीख लेकर राज्य के समग्र विकास में योगदान देना चाहिए।
समारोह का कुशल संचालन डॉ. राजीव आर्य ने अपनी प्रभावशाली शैली में किया। उन्होंने राज्य आंदोलन के कई प्रेरक प्रसंगों और संघर्ष की स्मृतियों को साझा करते हुए पूरे कार्यक्रम को जोड़े रखा।
कार्यक्रम के दौरान नरेंद्र वालिया, डॉ. अनीता नेगी, सरस्वती पुंडीर, मधु, जनक, शशी चौहान, जॉन आलम, वैष्णव कुमार , सुनीता, मोनू, पवन, सहित कई शिक्षक, कर्मचारी एवं शिक्षणार्थी उपस्थित रहे। उपस्थित जनसमूह में डीएलएड प्रशिक्षु दल ने भी सक्रिय सहभागिता दर्ज कराई। प्रशिक्षुओं ने इस अवसर को ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक बताते हुए कहा कि राज्य आंदोलन के बारे में प्रत्यक्ष अनुभव और जानकारी उन्हें भविष्य में समाज सेवा के लिए प्रेरित करेगी।
समारोह में उत्तराखण्ड की संगीत-संस्कृति और लोकधुनों पर आधारित प्रस्तुतियों ने भी सभी का मन मोह लिया। पर्वतीय लोकगीतों, झूमरी और राज्य गीतों की प्रस्तुति ने वातावरण को और भी अधिक दिव्य एवं उत्सवमय कर दिया।
कार्यक्रम के अंत में आयोजकों ने सभी अतिथियों, आंदोलनकारियों, शिक्षकगण, कर्मचारियों और प्रशिक्षुओं का हार्दिक धन्यवाद प्रकट किया। उन्होंने कहा कि राज्य आंदोलन केवल इतिहास का अध्याय नहीं बल्कि त्याग, संघर्ष और समर्पण की जीवित परंपरा है, जिसे सम्मानित करते रहना हमारा सामूहिक कर्तव्य है। नए भारत में उत्तराखण्ड की भूमिका को और अधिक मजबूती देने के लिए युवाओं को इसी भावना से प्रेरणा लेनी चाहिए।




