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उत्तराखंड में पेपर लीक मामले पर गंभीर चिंता जताते हुए मानवाधिकार परिषद ने मुख्यमंत्री को भेजा खुला पत्र

देहरादून।उत्तराखंड में प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक की लगातार घटनाओं पर गहरी चिंता जताते हुए ग्लोबल ह्यूमन राइट्स एंड सोशल जस्टिस काउंसिल (यूरेशिया अफ्रो चैंबर ऑफ कॉमर्स के अंतर्गत) ने सुबे के मुख्यमंत्री को एक खुला पत्र भेजा है।इस पत्र को काउंसिल के ग्लोबल चेयरमैन डॉ०रोहित गुप्ता ने लिखा है,कि जो भारत की प्रवक्ता सुश्री विशाखा चौधरी की ओर से उठाई गई चिंताओं के आधार पर जारी किया गया है।कानून बनने के बावजूद भी पेपर लीक की घटनाएं जारी हैं।पत्र में कहा गया है कि भले ही उत्तराखंड सरकार ने 2023 में उत्तराखंड प्रतियोगी परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम लागू किया हो,जिसमें आजीवन कारावास और भारी जुर्माने का प्रावधान है,किन्तु इसके बावजूद लेखपाल,वीडीओ और अन्य सेवाओं की भर्ती परीक्षाओं में पेपर लीक की घटनाएं थम नहीं रही हैं।डॉ०गुप्ता के अनुसार यह स्थिति न केवल प्रशासनिक अक्षमता को दर्शाती है,बल्कि इससे भर्ती प्रक्रियाओं पर से जनता का विश्वास भी खत्म हो रहा है,साथ ही इसमें संगठित भ्रष्टाचार कोचिंग माफियाओं और दलालों की भूमिका भी सामने आती है।काउंसिल ने इन घटनाओं को संवैधानिक और मानवाधिकार उल्लंघन करार दिया है।पत्र में कहा गया है कि अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोजगार का अधिकार) का हनन हो रहा है।अनुच्छेद 21 (जीवन और गरिमा का अधिकार) के अंतर्गत छात्र तनाव और बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त शिक्षा एवं विकास का अधिकार (UDHR अनुच्छेद 26) और काम का अधिकार (ICESCR) भी प्रभावित हो रहे हैं।पत्र में उल्लेख है कि कड़े कानून बनने के बावजूद पारदर्शी क्रियान्वयन और फास्ट-ट्रैक मुकद्दमों की कमी के कारण निवारक प्रभाव नहीं दिख रहा।हर नए घोटाले से हजारों युवाओं का भविष्य अधर में लटक रहा है और उनकी वर्षों की मेहनत व्यर्थ जा रही है।काउंसिल ने सरकार को कई सुझाव दिए हैं,जिनमें 1.स्वतंत्र परीक्षा बोर्ड की स्थापना,जो राजनीतिक और प्रशासनिक हस्तक्षेप से मुक्त हो।

2.फास्ट-ट्रैक कोर्ट,ताकि पेपर लीक मामलों का समयबद्ध निपटारा हो सके।

3.सुरक्षित डिजिटल तकनीकें जैसे एन्क्रिप्शन,एआई मॉनिटरिंग और ब्लॉकचेन।

4.पारदर्शिता और सामाजिक निगरानी,जिसमें छात्र प्रतिनिधि और एनजीओ शामिल हों।5.केवल छात्रों पर ही नहीं,बल्कि पूरे नेटवर्क–अधिकारियों,कोचिंग माफियाओं और दलालों पर कठोर कार्रवाई।डॉ०गुप्ता ने पत्र में कहा कि यह केवल प्रशासनिक मुद्दा नहीं है,बल्कि न्याय,समानता और मानवीय गरिमा का प्रश्न है।उत्तराखंड के हजारों युवाओं का भविष्य दाँव पर है।सरकार को इसे अत्यंत प्राथमिकता देनी चाहिए।काउंसिल ने आश्वासन दिया है कि वह इस दिशा में अनुसंधान,निगरानी और वकालत में सहयोग करने को तैयार है,ताकि पहल संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार मानकों और भारत के संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप हो सके।

SAMARTH DD NEWS

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