
आज राजकीय महाविद्यालय मंगलौर (हरिद्वार) ने उच्च शिक्षा में नये सोपान को प्राप्त करते हुए दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “1857 की क्रांतिः भारतीय स्थाभिमान का विवेचन” विषय पर इतिहास विभाग द्वारा आयोजित हुई । इस संगोष्ठी की मुख्य अतिथि प्रो० ममता सिंह, प्रदेश अध्यक्ष अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, उत्तराखण्ड एवं इतिहास विभागाध्यक्षा, एम० के० पी० महाविद्यालय देहरादून, विशिष्ट अतिथि प्रो० अजय परमार, निदेशक गुरुगोविन्द सिंह शोधपीठ उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार, एवं उत्तर प्रदेश शासन द्वारा सर्वोच्च शिक्षक पुरस्कार सरस्वती पुरस्कार से सम्मानित असो० प्रो० कृष्ण कान्त शर्मा चौ० चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ ने दीप प्रज्जवलित कर सरस्वती वंदना करी। इस के उपरान्त संगोष्ठी का संचालन कर रहे डॉ० प्रवेश त्रिपाठी ने आमत्रित अतिथियों का स्वागत करने के लिए भारती, असना, अनीशा, इत्यादि छात्राओं को निमंत्रित किया। इस संगोष्ठी के समन्वयक डॉ अनुराग ने संगोष्ठी के उदेश्य एवं लक्ष्यों से अवगत कराया। स्वागत गान के बाद विशिष्ट अतिथि प्रो० अजय परमार ने 1857 की कान्ति के अनछुए पहलूओं को उजागर किया। इन्होंने 1857 की कान्ति में लंढौरा, बिजनौर के कोतवाल श्री धनसिंह के अद्वितीय योगदान के लिए सराहना की। इसके बाद मुख्य वक्ता डॉ० ममता सिंह, ने अपनी ओजस्वी वाणी में उदघोष किया कि स्वतंन्त्रा आन्दोलन की प्रथम कान्ति ने स्वाभिमान का जो दीपक प्रज्ज्वलित किया, वही आज के भारत में परिलक्षित है। उन्होंने छात्रों के बीच ऊर्जा का संचार करते हुए अपनी जड़ो को सिंचित करते रहने की जरूरत पर बल दिया। इसके बाद श्री देव सुमन विश्वविद्यालय ऋषिकेश परिषर की इतिहास विभागाध्यक्ष और दर्जन भर से अधिक पुस्तकों की सम्पादिका एवं लेखिका प्रो० संगीता मिश्रा ने मंगल पाण्डेय को भारतीय राष्ट्रीयता का जीवन्त उदाहरण एवं प्रथम स्वतन्त्रता सिपाही बताया। उन्होंने विभिन्न विदेशी इतिहासकारों की कुत्सित मानसिकता पर सवाल उठाया जिन्होंने इसे मात्र सिपाही विद्रोह कह कर झुठलाने का प्रयास किया। अनन्तर असो० प्रो० कृष्ण कान्त शर्मा, ने पावर पॉइट के माध्यम से शोधार्थियों को 1857 की कान्ति की नयी जानकारियों से अवगत कराया।
इस के उपरान्त महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ तीर्थ प्रकाश ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में आमन्त्रित अतिथियों का धन्यवाद दिया। इस के साथ ही उन्होंने चेताया कि किसी भी राष्ट्र का भविष्य तभी सुरक्षित रहता है जब वह अपनी नयी पीढ़ी को उसकी जड़ो से जोड़ कर संस्कृति का पुल स्थापित करें। इस के पश्चात प्राचार्य द्वारा आमंन्त्रित अतिथियों का शॉल एवं स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया। इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए महाविद्यालय परिवार के डॉ० प्रज्ञा राजवंशी, डॉ० कलिका काले, डॉ० दीपा शर्मा डॉ० रचना वत्स श्रीमती सरमिष्टा, गीता जोशी, श्री फैजान अली, श्री सूर्य प्रकाश, श्री रोहित, श्री सन्नी, श्री जगपाल एवं छात्र छात्राओं बहुतायत में उपस्थित रहे।
